शेयर बाजार की दुनिया जितनी आकर्षक है, उतनी ही अप्रत्याशित भी। हर निवेशक कभी न कभी इस कठिन दौर से गुजरता है जब बाजार अचानक गिरने लगता है और डर की भावनाएं चारों ओर फैल जाती है। लेकिन यह गिरावट क्या वास्तव में हमारे लिए खतरा है, या यह एक सुनहरा अवसर बन सकती है? आज हम इतिहास के आईने में झांकेंगे और समझेंगे कि जब-जब बाजार गिरा, तब-तब क्या हुआ और आगे हमें क्या करना चाहिए।
भारतीय शेयर बाजार की 14 प्रमुख गिरावटें: कारण, गिरावट और रिकवरी
शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन कुछ गिरावटें ऐसी होती हैं जो निवेशकों के मन में डर बसा देती हैं। इन गिरावटों के पीछे कई आर्थिक, राजनीतिक और वैश्विक कारण होते हैं। आइए जानते हैं भारतीय शेयर बाजार की 14 सबसे बड़ी गिरावटों के बारे में, उनके पीछे की वजहें और बाजार को रिकवरी में कितना समय लगा।
1. हरशद मेहता घोटाला (1992)
हरशद मेहता द्वारा बैंकिंग प्रणाली में खामियों का फायदा उठाकर शेयर बाजार में भारी हेरफेर किया गया। इससे सेंसेक्स में अप्रत्याशित उछाल आया, उनकी चालाकी से सेंसेक्स 4500 अंकों तक पहुंच गया, लेकिन जब घोटाला उजागर हुआ, तो बाजार भरभराकर गिरा और निवेशकों को भारी नुकसान हुआ। यहाँ तक कि लाखों निवेशक सड़क पर आ गए, और इनका शेयर बाजार से भरोसा बुरी तरह डगमगा गया।
- गिरावट: सेंसेक्स 4500 अंकों से 2000 अंकों तक गिरा
- कारण: हरशद मेहता द्वारा बैंक फंड्स का गलत उपयोग करके शेयर बाजार में कृत्रिम उछाल लाना
- रिकवरी: बाजार को सामान्य होने में लगभग 2 साल लगे
2. केतन पारेख घोटाला (2001)
केतन पारेख ने टेक्नोलॉजी स्टॉक्स में बेवजह उछाल लाकर निवेशकों को भ्रम में डाला। लेकिन जब सच्चाई सामने आई, तो सेंसेक्स 5720 से सीधा 2600 पर आ गिरा। जिन लोगों ने इन स्टॉक्स में पैसा लगाया था, वे पूरी तरह बर्बाद हो गए।
- गिरावट: सेंसेक्स 5720 से गिरकर 2600 पर आ गया
- कारण: केतन पारेख द्वारा शेयर बाजार में हेरफेर और टेक्नोलॉजी स्टॉक्स में अनावश्यक उछाल
- रिकवरी: बाजार को 1.5 साल में सुधार मिला
3. आईटी डॉट-कॉम बबल (2000)
इस समय भारत में इंटरनेट कंपनियां धीरे धीरे अपना पैर फैला रही थी, निवेशक इससे आकर्षित हुए और डॉट-कॉम कंपनियों में निवेशकों ने आंख मूंदकर पैसा लगाया, लेकिन जब कंपनियों के असली वित्तीय हालात उजागर हुए, तो बुलबुला फूट गया। भारतीय बाजार भी इस गिरावट की चपेट में आ गया।
- गिरावट: सेंसेक्स लगभग 40% गिरा
- कारण: टेक कंपनियों के ओवरवैल्यूएशन के कारण बबल फूटना
- रिकवरी: लगभग 3 साल में बाजार स्थिर हुआ
4. 2004 चुनावी गिरावट
उस समय देश में चुनाव का माहौल था और लोगों को भरोसा था कि बीजेपी सत्ता में आएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। राजनीतिक अनिश्चितता के कारण यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान बाजार में भारी गिरावट देखी गई। सेंसेक्स में 800 अंकों की गिरावट आई, जो उस समय की सबसे बड़ी एकदिवसीय गिरावटों में से एक थी।
- गिरावट: सेंसेक्स 11% गिरा (4500 से 4000 के नीचे)
- कारण: यूपीए सरकार के आने से बाजार में अस्थिरता
- रिकवरी: 1 महीना लगा बाजार को संभलने में
5. 2006 मई क्रैश
साल 2006 की शुरुआत में भारतीय शेयर बाजार तेजी से नई ऊंचाइयों को छू रहा था। सेंसेक्स 12,612 अंकों पर था, निवेशकों का भरोसा मजबूत था, और हर कोई मान रहा था कि बाजार अब कभी पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। लेकिन फिर मई 2006 आया और बाजार ने ऐसा झटका दिया कि लाखों निवेशकों का विश्वास डगमगा गया। हुआ ये कि उस समय दुनिया भर के बाजारों में मंदी का माहौल था, जिससे भारत भी अछूता नहीं रहा। जैसे ही विदेशी निवेशकों (FIIs) ने अपने पैसे निकालने शुरू किए, भारतीय शेयर बाजार में हाहाकार मच गया। उस समय बाजार की तेजी देखकर कई निवेशकों ने बिना सोचे-समझे ऊंचे दामों पर शेयर खरीदे थे, जो अब धड़ धड़ाकर गिरने लगे।
- गिरावट: सेंसेक्स 12,612 से गिरकर 8800 पहुंचा
- कारण: वैश्विक बाजारों में गिरावट और विदेशी निवेशकों की बिकवाली
- रिकवरी: 6 महीने में बाजार सामान्य हुआ
6. 2008 ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस
अमेरिका के सबप्राइम मॉर्गेज संकट ने पूरी दुनिया की वित्तीय व्यवस्था को हिला दिया। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा, और सेंसेक्स 21,000 से गिरकर 8,160 पर पहुंच गया। सेंसेक्स में भारी गिरावट देखी गई, जिससे निवेशकों का विश्वास हिल गया।
- गिरावट: सेंसेक्स 21,000 से 8,160 पर आ गया
- कारण: अमेरिकी सबप्राइम क्राइसिस, बैंकिंग सेक्टर में गिरावट
- रिकवरी: 2.5 साल लगे बाजार को वापस उठने में
7. 2010 यूरोपियन डेट क्राइसिस
2010 में यूरोप के कई देशों—विशेष रूप से ग्रीस, पुर्तगाल और स्पेन—के ऋण संकट ने वैश्विक बाजारों को झकझोर कर रख दिया। इन देशों पर कर्ज का बोझ इतना बढ़ गया कि उनकी अर्थव्यवस्था चरमरा गई। निवेशकों का विश्वास डगमगाया और इसका असर भारतीय शेयर बाजार पर भी पड़ा।वैश्विक बाजारों में बिकवाली के कारण भारतीय शेयर बाजार में भी हाहाकार मच गया।
- गिरावट: सेंसेक्स 21,000 से 17,000 पर आ गया
- कारण: यूरोप में ग्रीस और अन्य देशों के वित्तीय संकट
- रिकवरी: 1 साल में बाजार ने रिकवरी की
8. 2013 टेपर टैंट्रम
2013 में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने घोषणा की कि वह धीरे-धीरे बॉन्ड खरीदारी की प्रक्रिया को कम करेगा, जिससे वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल मच गई। विदेशी निवेशकों ने उभरते बाजारों से पैसा निकालना शुरू कर दिया, और इसका सीधा असर भारतीय शेयर बाजार पर पड़ा।
- गिरावट: सेंसेक्स 20,000 से 17,500 पर गिरा
- कारण: अमेरिका द्वारा बॉन्ड खरीदारी कम करने की घोषणा
- रिकवरी: 6 महीने में सुधार हुआ
9. 2016- नोटबंदी और ट्रंप चुनाव
8 नवंबर 2016 की रात, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा कर दी। यह ऐसा फैसला था, जिसने पूरे देश को हिला दिया। बाजार में घबराहट फैल गई, क्योंकि नकदी संकट से व्यापार और उद्योग ठप हो गए। उसी समय, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति चुने गए, जिससे वैश्विक बाजारों में भी अस्थिरता आ गई।
- गिरावट: सेंसेक्स 28000 से 26000 तक गिरा
- कारण: भारत में नोटबंदी और अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की चुनावी जीत
- रिकवरी: 4 महीने में बाजार वापस आया
10. 2018 IL&FS क्राइसिस
2018 में इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) समूह दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया। यह भारत की सबसे बड़ी वित्तीय संस्थाओं में से एक थी, जिसके दिवालिया होने की खबर से पूरे वित्तीय बाजार में हड़कंप मच गया। बैंकिंग और एनबीएफसी सेक्टर पर गहरा असर पड़ा, और निवेशकों ने घबराकर बिकवाली शुरू कर दी।
- गिरावट: सेंसेक्स 38,000 से 33,000 तक गिरा
- कारण: IL&FS दिवालिया होने की खबरें, लिक्विडिटी संकट
- रिकवरी: 6 महीने में बाजार स्थिर हुआ
11. 2019 - कॉर्पोरेट टैक्स कट अनाउंसमेंट से पहले की गिरावट
2019 में भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती के संकेत मिलने लगे। औद्योगिक उत्पादन घटने लगा, ऑटो सेक्टर संकट में था, और विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे थे। इससे निवेशकों में डर बैठ गया और बाजार में गिरावट शुरू हो गई। हालांकि, बाद में सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की घोषणा की, जिससे बाजार ने वापसी की।
- गिरावट: सेंसेक्स 39,000 से 35,000 तक गिरा
- कारण: स्लोडाउन की आशंका, विदेशी निवेशकों की बिकवाली
- रिकवरी: 2 महीने में सुधार हुआ
12. 2020 - कोरोना महामारी का प्रभाव
2020 में जब कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया, तो सिर्फ इंसानी जिंदगियां ही नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं भी थम गईं। भारत में लॉकडाउन लगते ही हर सेक्टर में उथल-पुथल मच गई। कारोबार बंद हो गए, फैक्ट्रियों में ताले लग गए, और शेयर बाजार में कोहराम मच गया।कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था ठप हो गई। भारत में भी लॉकडाउन और आर्थिक गतिविधियों में गिरावट के चलते शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी गई, जिससे निवेशकों में भय और अनिश्चितता का माहौल बना।
- गिरावट: सेंसेक्स 42,000 से 25,000 पर गिरा
- कारण: लॉकडाउन, आर्थिक मंदी की चिंता
- रिकवरी: 9 महीने में बाजार नई ऊंचाइयों पर पहुंचा
13. 2022 - रूस-यूक्रेन युद्ध
2022 की शुरुआत में जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ा, तो दुनिया के बाजारों में अफरा-तफरी मच गई। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतों में भारी उछाल आया, जिससे महंगाई बढ़ने लगी और बाजार में डर का माहौल बन गया।
- गिरावट: सेंसेक्स 62,000 से 52,000 तक गिरा
- कारण: युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में उछाल
- रिकवरी: 4 महीने में बाजार संभला
14. 2023 - अमेरिकी बैंकिंग संकट
मार्च 2023 में, अमेरिकी बैंकिंग संकट ने वैश्विक वित्तीय बाजारों को हिला कर रख दिया। सिलिकॉन वैली बैंक (SVB), सिग्नेचर बैंक और कुछ अन्य बड़े अमेरिकी बैंक दिवालिया हो गए, जिससे निवेशकों में घबराहट फैल गई। इसका असर भारतीय बाजार पर भी पड़ा और सेंसेक्स में भारी गिरावट देखी गई।
- गिरावट: सेंसेक्स 61,000 से 57,000 तक गिरा
- कारण: अमेरिकी बैंकों (SVB) का दिवालिया होना
- रिकवरी: 3 महीने में बाजार ने सुधार किया
भारतीय शेयर बाजार में अक्टूबर 2024 से लगातार गिरावट –
शेयर बाजार का सफर कभी सीधा-सीधा नहीं होता, यह एक ऐसी राह है जो कभी आसमान छूती है, तो कभी धरती पर पटक देती है। जो लोग बाजार को केवल तेजी से देखते हैं, वे गिरावट में डर जाते हैं, लेकिन जो इसे एक यात्रा मानते हैं, वे हर गिरावट में मौके खोजते हैं।अक्टूबर 2024 से अब तक(11 मार्च 2025) भारतीय शेयर बाजार में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। सेंसेक्स और निफ्टी अपने ऑल-टाइम हाई से काफी नीचे आ चुके हैं। निवेशकों में डर और घबराहट का माहौल है। क्या यह एक बड़ा संकट है, या फिर इतिहास हमें कुछ और सिखा रहा है? आइए, इसे समझने की कोशिश करते हैं।
इतिहास के पन्नों से सीखें: 14 बार बाजार गिरा, लेकिन उठा भी!
शेयर बाजार का इतिहास इस बात का साक्षी है कि यह कई बार गिरा और हर बार पहले से ज्यादा मजबूती के साथ उठा भी। इस गिरावट से पहले पिछले 100 से अधिक वर्षों में बाजार 14 बड़े क्रैश देख चुका है, और हर बार निवेशकों के मन में यही सवाल उठा – "अब क्या होगा?" क्या बाजार का अंत हो सकता है? यह कल्पना भी असंभव है! अगर शेयर बाजार खत्म हो जाए, तो अर्थव्यवस्था ठप हो जाएगी, उद्योग-धंधे बंद हो जाएंगे, नौकरियां चली जाएंगी और यह किसी भी देश के लिए विनाशकारी होगा। सच्चाई यह है कि बाजार सिर्फ गिरने के लिए नहीं बना, बल्कि उभरने के लिए भी बना है। अगर हम लॉन्ग टर्म चार्ट देखें, तो यह हमेशा बाएं से दाएं ऊपर की ओर जाता है। बीच-बीच में गिरावट आती है, लेकिन अंततः यह नई ऊंचाइयों को छूता है। आज से पहले भी लोगों ने यही सवाल पूछा था कि बाजार उठेगा या नहीं, लेकिन जो धैर्य रखकर डटे रहे, वे सबसे बड़े विजेता बने।
क्या आपको घबराना चाहिए या निवेश करना चाहिए?
जब बाजार गिरता है, तो डर और घबराहट सबसे ज्यादा होती है। लोग पैसे निकालने लगते हैं, निवेश रोक देते हैं, और यही गलती होती है! जबकि स्मार्ट निवेशक जानते हैं कि असली पैसा डर के माहौल में ही बनता है।जब सब बेच रहे होते हैं, तब खरीदने का समय होता है। क्योंकि जब बाजार सुधरता है, तो सबसे ज्यादा मुनाफा वही कमाते हैं जो सही समय पर निवेश करते हैं।
तो अब सवाल है – क्या यह सही समय है?
क्या यह गिरावट आखिरी गिरावट होगी? अगर हम पिछले आंकड़ों को देखें, तो बाजार पहले भी कई बार 25-30% तक गिरा है, लेकिन हर बार उभर कर आया है। 1994-95 में लगातार 8 महीने बाजार गिरता रहा, लेकिन फिर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। 1996, 2001, 2008, 2020 आदि हर बार भारी गिरावट आई, लेकिन कुछ सालों में ही बाजार ने नई ऊंचाइयां छू लीं। 2024 में अब तक बाजार 15-16% गिरा है, जबकि पहले भी यह 25-30% तक गिर चुका है।
क्या करें इस बाजार क्रैश में?
✅ घबराएं नहीं, बल्कि समझदारी से फैसले लें।
✅ अगर आपने सही कंपनियों में निवेश किया है, तो धैर्य बनाए रखें।
✅ गिरावट में अच्छे स्टॉक्स खरीदने के मौके तलाशें।
✅ अगर लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर हैं, तो यह समय डरने का नहीं, बल्कि अवसर तलाशने का है।
✅ हर गिरावट के बाद एक नई बुल रैली आती है – इस बार भी आएगी!
निष्कर्ष:
बाजार हमेशा दो चीजों पर चलता है – डर और लालच। अभी डर हावी है, लेकिन जब बाजार उठेगा, तो वही लोग जो आज बेच रहे हैं, वापस खरीदने के लिए भागेंगे। समझदार निवेशक वही है जो गिरावट में शांत रहे और सही फैसले ले।शेयर बाजार की गिरावटें डरावनी जरूर होती हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि हर गिरावट के बाद बाजार ने रिकवरी की है और नई ऊंचाइयों को छुआ है। यदि आप धैर्य और विवेक से निवेश करते हैं, तो इन गिरावटों का सही उपयोग कर सकते हैं और लॉन्ग टर्म में अच्छा रिटर्न पा सकते हैं। शेयर बाजार में गिरावट को डर की नहीं, बल्कि अवसर की नजर से देखें!
अगर आप सच में सफल निवेशक बनना चाहते हैं, तो इतिहास से सीखिए। बाजार का उतार-चढ़ाव हमेशा रहेगा, लेकिन जो धैर्य बनाए रखते हैं, वे ही विजेता बनते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
Q1. शेयर बाजार क्रैश क्या होता है?
Ans. जब बाजार में अचानक तेज गिरावट आती है और निवेशकों का भरोसा हिल जाता है, तो इसे क्रैश कहते हैं। यह कई कारणों से हो सकता है, जैसे – आर्थिक मंदी, वैश्विक घटनाएं, नीतिगत फैसले या निवेशकों की घबराहट।
Q2. शेयर बाजार क्रैश क्यों होता है?
Ans. डर और अनिश्चितता किसी भी बाजार को गिराने के सबसे बड़े कारण होते हैं। विदेशी निवेशकों की बिकवाली, आर्थिक संकट, युद्ध, सरकारी नीतियों में बदलाव या वैश्विक मंदी से बाजार क्रैश हो सकता है।
Q3. जब बाजार क्रैश हो जाए तो निवेशकों को क्या करना चाहिए?
Ans. घबराना नहीं चाहिए! इतिहास गवाह है कि हर बड़ी गिरावट के बाद बाजार और भी मजबूत होकर उभरा है। सही कंपनियों में धैर्य बनाए रखना ही सफलता की कुंजी है।
Q4. क्या हर गिरावट के बाद रिकवरी होती है?
Ans. हां! बाजार में गिरावट आती है, लेकिन जो धैर्य रखते हैं, वे जीतते हैं। लॉन्ग-टर्म निवेशकों के लिए यह सुनहरा मौका होता है।
Q5. बाजार क्रैश के दौरान निवेश का सही तरीका क्या है?
Ans. ‘Fear में खरीदो, Greed में बेचो’ – जब सब बेच रहे हों, तो समझदारी से अच्छे स्टॉक्स खरीदें और जब बाजार नई ऊंचाइयों पर हो, तब सही समय पर मुनाफा बुक करें।